-दिनेश ठाकुर
कन्नड़ के दिग्गज फिल्मकार विजय रेड्डी ( Vijay Reddy ) नहीं रहे। उन्होंने शुक्रवार रात चेन्नई में आखिरी सांस ली। वे 84 साल के थे। पौराणिक, ऐतिहासिक और जंगलों के विषयों पर फिल्में बनाने के लिए मशहूर विजय रेड्डी की कन्नड़ सिनेमा में वही हैसियत थी, जो हिन्दी सिनेमा में मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा की थी। उनकी फिल्मों की शैली मनमोहन देसाई के सिनेमा के ज्यादा करीब थी। मनमोहन देसाई आम दर्शकों की नब्ज टटोल कर मसाला फिल्में बनाते थे और ‘जनमोहन देसाई’ कहलाते थे। अगर अमिताभ बच्चन ( Amitabh Bachchan ) उनकी फिल्मों (अमर अकबर एंथॉनी, परवरिश, सुहाग, कुली, नसीब, देशप्रेमी, मर्द) की बड़ी ताकत थे, तो विजय रेड्डी के लिए कन्नड़ सिनेमा के सुपर सितारे डॉ. राजकुमार तुरुप का इक्का थे। इस जोड़ी की कई फिल्में क्लासिक का दर्जा रखती हैं। ये वही राजकुमार हैं, बीस साल पहले जिनका अपहरण कर चंदन तस्कर वीरप्पन ने देशभर में सनसनी फैला दी थी।
विजय रेड्डी की बनाई हिन्दी फिल्में
विजय रेड्डी ने हिन्दी फिल्में भी बनाईं। इनमें से ज्यादातर उनकी कन्नड़ फिल्मों का रीमेक हैं। मसलन जैकी श्रॉफ ( Jackie Shroff ) और पूनम ढिल्लों को लेकर बनाई गई ‘तेरी मेहरबानियां’ ( Teri Meherbaniyan ) उनकी ‘थालिया भाग्य’ का रीमेक थी। यह पहली फिल्म है, जिसमें एक श्वान से वह सब करवाया गया, जो आम तौर पर फिल्मों में नायक करते हैं। इससे पहले विजय रेड्डी ने संजीव कुमार, राखी, दीप्ति नवल और राकेश रोशन के अहम किरदारों वाली ‘श्रीमान श्रीमती’ बनाई, जो अलग तरह की पारिवारिक फिल्म है। इसे किशोर कुमार के गीत ‘ओ री हवा धीरे से चल’ के लिए याद किया जाता है। जंगल के विषयों पर विजय रेड्डी ने हिन्दी में ‘जवाब हम देंगे’ (श्रीदेवी, जैकी श्रॉफ) और ‘मैं तेरा दुश्मन’ (जैकी श्रॉफ, जयप्रदा) बनाईं। जंगलों के बारे में उनकी कन्नड़ फिल्म ‘गंधाडा गुडी’ से प्रेरित होकर निर्देशक मोहन सहगल ने ‘कर्तव्य’ (धर्मेंद्र, रेखा) बनाई, तो उनकी हॉरर फिल्म ‘ना निन्ना बिदातोर’ हिन्दी में ‘मंगलसूत्र’ (रेखा, अनंत नाग) का आधार बनी। ‘प्यार किया है प्यार करेंगे’ (अनिल कपूर, पद्मिनी कोल्हापुरे) उनकी ‘ना निन्ना मरेयालरे’ (यह फिल्म सिनेमाघरों में 175 हफ्ते चली थी) का और ‘जीना मरना तेरे संग’ (संजय दत्त, रवीना टंडन) ‘प्रेम पर्व’ का रीमेक है।
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कन्नड़ सिनेमा में ज्यादा रहे व्यस्त
विजय रेड्डी ने हॉलीवुड की ‘सी नो ईवल हियर नो ईवल’ से प्रेरित होकर ‘हम हैं कमाल के’ (शीबा, कादर खान, सदाशिव अमरापुरकर) बनाई। उनकी ‘पाप का अंत’ (गोविंदा, माधुरी दीक्षित) में इंतकाम का जाना-पहचाना ड्रामा था। दोनों फिल्में ज्यादा नहीं चलीं। इसके बाद वे हिन्दी के बजाय कन्नड़ सिनेमा में ज्यादा व्यस्त रहे। कहानी के साथ-साथ संगीत उनकी फिल्मों की मजबूत कड़ी होता था। डॉ. राजकुमार के अलावा उन्होंने शंकर नाग और अनंत नाग जैसे मंजे हुए कन्नड़ अभिनेताओं के साथ भी कई फिल्में बनाईं। उनकी आखिरी कन्नड़ फिल्म ‘हृदयांजलि’ 2003 में आई थी।
‘मयूरा’ से प्रेरित राजामौलि की ‘बाहुबली’
जब उत्तर भारत में ‘शोले’ (1975) धूम मचा रही थी, उन्हीं दिनों दक्षिण में विजय रेड्डी की पीरियड फिल्म ‘मयूरा’ पर छप्पर फाड़कर धन बरस रहा था। इसी फिल्म से प्रेरित होकर तेलुगु फिल्मकार एस.एस. राजामौलि की ‘बाहुबली’ की कहानी रची गई। यानी विजय रेड्डी की फिल्मों ने कई भाषाओं के सिनेमा को धन्य किया है।