-दिनेश ठाकुर
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद अलग-अलग खेमों में बंटे बॉलीवुड ने ‘एकला चालो’ के स्वर छोड़कर ‘हम साथ-साथ हैं’ का जो बिगुल बजाया है, उसके पीछे एकजुटता की भावना कम, मौजूदा हालात की मजबूरी ज्यादा झलक रही है। चार महीने से भाई-भतीजावाद और इनसाइडर- आउटसाइडर के आरोपों के अलावा ड्रग्स मामले में कुछ सितारों के नाम उछलने से सपने बेचने वाली फिल्म इंडस्ट्री की काफी फजीहत हुई। यूं कभी माफिया के साथ सांठगांठ के आरोप तो कभी ‘मी टू’ के मामले उसके दामन पर बदनामी के छींटे छिड़कते रहे हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक के बाद एक कई मामलों को लेकर उस पर अंगुलियां उठाई गईं। हमेशा सनसनी की खोज में रहने वाले खबरिया चैनल्स की तो गोया लॉटरी ही खुल गई। जाने कहां-कहां से खबरें खोदकर लाई जा रही हैं और नमक-मिर्च लगाकर रात-दिन दिखाई जा रही हैं। फिल्म वालों की टांग खींचने का कोई मौका नहीं छोड़कर खबरिया चैनल्स का परम आनंद चरम पर है, तो इनमें से कुछ की टीआरपी एवरेस्ट पर जा पहुंची है। जितना ज्यादा नमक-मिर्च, उतनी ज्यादा टीआरपी।
टीआरपी के इस खेल में सच तक पहुंचने की भावना कम, फिल्म इंडस्ट्री पर येन केन प्रकारेण खुन्नस निकालने का भाव ज्यादा है। दिन में जाने कितनी बार किस-किस की पोल खोलने का दावा करने वाले टीवी चैनल्स से त्रस्त बॉलीवुड को एकजुट होना ही था। दो दिन पहले अनिल कपूर, आमिर खान, अजय देवगन, सलमान खान, शाहरुख खान, करण जौहर और रोहित शेट्टी समेत कई सितारों तथा फिल्मकारों ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की कि खबरिया चैनल्स को बॉलीवुड के खिलाफ अपमानजनक और गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणियों से रोका जाए।
पिछले साल मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर बॉलीवुड में इसी तरह की एकजुटता नजर आई थी, जब करीब 50 सितारों और फिल्मकारों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर मॉब लिंचिंग पर रोक की अपील की थी। यह एकजुटता जल्द ही बिखर गई। कंगना रनौत, प्रसून जोशी और मधुर भंडारकर समेत करीब 60 हस्तियों ने इस अपील पर विरोध जताते हुए इंडस्ट्री के कुछ लोगों पर झूठी कहानियां फैलाने का आरोप लगाया था। कुछ उसी तरह के स्वर अब हाई कोर्ट में दायर याचिका को लेकर उठ रहे हैं।
खबरिया चैनल्स के खिलाफ फिल्मी हस्तियों का हाथ मिलाना वाजिब है, लेकिन यह एकजुटता कितने दिन कायम रहेगी,कोई नहीं बता सकता। वैसे भी बॉलीवुड में एकजुटता नाम की चिडिय़ा कम ही देखने को मिलती है। शुरू से यह इंडस्ट्री अलग-अलग खेमों में बंटी रही है। हर बड़े सितारे और फिल्मकार के खेमे टापुओं की तरह बिखरे पड़े हैं। इन खेमों में एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ चलती रहती है। किसी खेमे की फिल्म पिटने पर प्रतिद्वन्द्वी खेमे में जश्न मनाने की रस्म आम है। किसी जमाने में यही खेमेबाजी राजेश खन्ना का सितारा अस्त होने का कारण बनी। राजेश खन्ना के खेमे में झूठी वाह-वाह करने वालों की भरमार थी। राजेश खन्ना इस वाह-वाह में मगन होकर कमजोर फिल्में साइन करते रहे और दूसरे खेमों की हवाएं उनकी सुपर सितारा हैसियत उड़ा ले गई।