-दिनेश ठाकुर
निदा फाजली ने फरमाया है- ‘दूर रहकर तो हर शख्स भला लगता है/ कोई नजदीक से देखे तो पता लगता है।’ ज्यादातर फिल्मों के साथ यही होता है। प्रदर्शन से पहले ‘खाली पीली’ शोर मचाया जाता है। उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम- हर दिशा से इनके पक्ष में हवा बनाने की कवायद होती है, लेकिन फिल्म में ‘कतरा-ए-खूं’ तक नजर नहीं आता। किसी जमाने में आने वाली फिल्मों का ऐसा शोर नहीं होता था। सिनेमाघरों में पोस्टर देखकर ही पता चलता था कि फलां फिल्म आने वाली है। उस दौर में कई फिल्म प्रेमी सिर्फ यह जानने के लिए कि कौन-सी फिल्म आने वाली है, हफ्ते-दो हफ्ते में सिनेमाघर के चक्कर काट आते थे। बहरहाल, कोई फिल्म भले दबे पांव आए, अगर वह अच्छी है, उसकी खुशबू अगरबत्ती के धुएं की तरह फैलते देर नहीं लगती। अभिनेता-निर्देशक परमव्रत चट्टोपाध्याय ( Parambrata Chattopadhyay ) की ‘टिकी टाका’ ( Tiki Taka Movie ) इसी तरह की चुस्त-दुरुस्त, नोक-पलक संवरी, धीमे-धीमे गुदगुदाने वाली फिल्म है, जो एक ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीम हो रही है। यह बांग्ला फिल्म हिन्दी में डब की गई है। टिकी टाका फुटबॉल की एक खास शैली है, जो बार्सिलोना और स्पेन के खिलाडिय़ों ने विकसित की।
यह है कहानी
साहित्य, संगीत, फुटबॉल और रसगुल्ला बंगाल की संस्कृति के चार प्रमुख अंग हैं। वहां फुटबॉल जुनून का दूसरा नाम है। बच्चों से बुजुर्गों तक यह खेल रसगुल्ले से भी ज्यादा रस का सबब है। इसी खेल को लेकर ‘टिकी टाका’ में दिलचस्प घटनाओं का ताना-बाना बुना गया है। किस्सा यूं है कि अफ्रीकी देश सेनेगल से खेलची (एमोना इनाबुलु) नाम का शख्स फुटबॉल में ड्रग्स छिपाकर कोलकाता पहुंचता है। इससे पहले कि वह ‘माल’ ड्रग्स के कारोबारी तक पहुंचाता, टैक्सी ड्राइवर राजू (परमव्रत चट्टोपाध्याय) से मिलने के बाद एक अलग खेल शुरू हो जाता है। खेलची को बड़ा फुटबॉल खिलाड़ी मान लिया जाता है। कोलकाता में इस खेल के कई संगठन उसे ‘टॉक ऑफ द टाउन’ बना देते हैं। खेलची को हीरो बनाने में एक प्रशिक्षु पत्रकार (ऋताभरी चक्रवर्ती) का भी हाथ है। क्या खेल के मैदान में उतरने के बाद खेलची की हीरोगीरी कायम रह पाएगी?
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निर्देशन और अभिनय
खेल और अपराध के दो विपरीत ध्रुवों को ‘टिकी टाका’ में सूझ-बूझ और सलीके से साधा गया है। शेक्सपीयर की ‘कॉमेडी ऑफ एरर्स’ से प्रेरित प्रसंग बीच-बीच में हास्य को दिलचस्प मोड़ देते रहते हैं। फिल्म में टीवी चैनल्स के उन उतावले पत्रकारों की खूब खबर ली गई है, जो पुख्ता जानकारी जुटाए बगैर अफवाहों को खबर बना देते हैं। प्रशिक्षु पत्रकार के किरदार में ऋताभरी चक्रवर्ती लाजवाब कर देती हैं। वे बांग्ला फिल्मों में काफी समय से चमक रही हैं। मुमकिन है, ‘टिकी टाका’ से उनका सितारा हिन्दी सिनेमा में भी उदय हो जाए।
इसलिए देखी जा सकती है यह फिल्म
मशहूर बांग्ला फिल्मकार रित्विक घटक और साहित्यकार महाश्वेता देवी के परिवार के परमव्रत चट्टोपाध्याय की यह फिल्म बासु चटर्जी की सहज हास्य वाली ‘खट्टा मीठा’, ‘शौकीन’ और ‘चमेली की शादी’ की यादें ताजा कर देती है। पूरी फिल्म झरने की तरह बहती है। कहानी में न कहीं झोल पैदा होता है, न इसे बोझिल होने दिया गया है। परमव्रत चट्टोपाध्याय अच्छे अभिनेता हैं, यह उनकी पहली हिन्दी फिल्म ‘कहानी’ (विद्या बालन) में पता चल गया था। उसमें वे पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में थे। ‘परी’ और ‘बुलबुल’ में भी वे नजर आ चुके हैं। ‘टिकी टाका’ बतौर निर्देशक उनके बहुत आगे जाने के संकेत देती है।
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० फिल्म : टिकी टाका
० अवधि : 1.44 घंटे
० निर्देशक : परमव्रत चट्टोपाध्याय
० लेखन : रोहण घोष, शौविक बनर्जी
० फोटोग्राफी : रवि किरण अय्यागरी
० संगीत : एन. बोस
० कलाकार : परमव्रत चट्टोपाध्याय, ऋताभरी चक्रवर्ती, एमोना इनाबुलु, शाश्वत चटर्जी, खरज मुखर्जी, शांतिलाल मुखर्जी, परण बंदोपाध्याय आदि।